150वीं गांधी जयंती पर, प्रधानमंत्री ने गांधी की छवि का उपयोग कैसे किया
4-Oct-2018 Vinod Kochar wrote this contrarian article
150वीं गांधी जयंती पर, प्रधानमंत्री ने गांधी को उनके विराट व्यक्तित्व के हिमालयीन शिखर से एक दम नीचे उतारकर, उन्हें अपमानित किया है।
उन्होंने अपने, ‘खुले में शौच मुक्त अभियान’ को महात्मा गांधी का स्वतंत्रता से भी एक कदम आगे का(बल्कि अंतिम)अभियान निरूपित करते हुए स्वतंत्रता के लक्ष्य को, खुले में शौच मुक्त अभियान से छोटा लक्ष्य बताने की भी धृष्टता कर डाली और अपने इस अभियान की प्रेरणा का स्रोत गांधी को बता दिया।
दरसल सच तो ये है कि जिस आरएसएस की वैचारिक कोख से मोदीजी पैदा हुए हैं, वही जब गांधी को नहीं समझ पाया(या समझकर उनके तेजस्वी व्यक्तित्व से जानबूझकर आज तक आंख चुरा रहा है)तो बेचारे मोदीजी जैसे इतिहास के हास्यास्पद ‘ज्ञानी’ गांधी को क्या समझ पाएंगे?
1965में महात्मा गांधी को उनके अफ्रीका से लौटने के50वर्ष बाद तथा उनकी जघन्य हत्या के18वर्ष बाद,नागपुर में संघ स्वयंसेवकों के तृतीय वर्ष प्रशिक्षण के 30दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के दौरान,आरएसएस ने पहली बार अपने प्रातः स्मरणीय महापुरुषों की मालिका में जब शामिल किया तो स्वयंसेवकों के दिलोदिमाग में प्रयत्नपूर्वक, खुद अपने ही द्वारा भरी गई नफरत की विचारधारा से उत्पन्न सवालों का ये जवाब देकर आरएसएस ने स्वयंसेवकों को कामचलाऊ तौर पर शांत कर दिया था कि गांधी इसलिये प्रातः स्मरणीय हैं क्योंकि उन्होंने डॉ आंबेडकर और उनके लाखों अनुयायियों को हिन्दू धर्म त्यागकर मुसलमान बनने से रोका था और इस आधार पर भारत को विभाजित होने से रोका था।
याने आरएसएस की नजर में, देश-दुनिया को चकमा देने के लिए आरएसएस ने वहाँ भी गांधी को हिंदुत्व का मसीहा करार दिया।
तो जब आरएसएस की समझ का, गांधी के संदर्भ में इतना घटिया स्तर है तो मोदीजी जी की समझ का स्तर तो इससे जादा घटिया होना ही है,खासकर आज के सरकार समर्थक गोडसे के स्तुतिगान अभियान के दौरान।
विश्व मानवता गांधी की महानता के उस हिमालयीन
पहलू से प्रभावित हुई है जिसने अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का ,निर्भयता पर आधारित अहिंसात्मक हथियार विश्व मानवता को पहली बार सौंपा।
गांधी की महानता के इसी पहलू ने मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला जैसे नर रत्न पैदा किये।
स्वच्छता अभियान तो गांधी के,भारतीय परंपरा पर आधारित चरित्र का एक व्यक्तिगत पहलू मात्र था।
उसमें भी, ‘खुले में शौचमुक्त अभियान उनकी स्वच्छता की कल्पना का एक छोटा सा पहलू था।वो भी ऐसा पहलू जो पानी के बेहद कम खर्चीले(मात्र एक लीटर से भी कम)खर्च वाला, प्रकृति और पर्यावरण का मित्र/रक्षक/संवर्धक पहलू।बेहद कम खर्चीला।
मोदीजी का अभियान इन मानवीय उच्चादर्शों के एक दम विपरीत है।पीने तक के पानी के लिए जिस भारत में आज तक करोणों हिंदुस्तानियों को अपना खून पसीना एक करना पड़ता है वहाँ प्रति व्यक्ति कम से कम दस लीटर पानी खर्च करने वाले यूरोपियन शैली के शौचालय बनाए जा रहे हैं जो पानी की समस्या के कारण उपयोग में ही नहीं लाए जा रहे हैं।
ऐसे शौचालय भी हक़ीकत की धरती पर कम और गोदी मीडिया वाली भाटगिरी की धरती पर अधिक बनाए जा रहे हैं जिन्हें मोदीजी अपना खुद का सपना बताकर देश को बताएं तो कोई बात नहीं लेकिन ऐसे वाहियात सपने के साथ मोदीजी जब गांधी को जोड़ते हैं तो हंसी मिश्रित गुस्सा आता है।
बेहतर तो यही होगा कि मोदीजी अपने स्तर पर बने रहें और गांधी को गांधी के ही स्तर पर बने रहने दें।
यही गांधी के प्रति उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
बकौल दुष्यंत:-
गजब है!सच को सच कहते नहीं वो!!
कुरान-ओ-उपनिषद खोले हुए हैं!
— विनोद कोचर
(4-10-18)
Good article 💯